
नयी दिल्ली, 05 जुलाई। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयुक्तों की पारदर्शी तरीके से नियुक्तियों के लिए प्रकिया तय करने की आवश्यकता जताई है। मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह केहर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अनूप बर्नवाल नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां निष्पक्ष एवं पारदर्शी रही हैं, लेकिन हम भी मानते हैं कि इसके लिए कोई तय प्रक्रिया मौजूद नहीं है। पीठ ने कहा निर्वाचन आयोग पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की बड़ी जिम्मेदारी है, इसलिए जरूरी है कि नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी हो और इसके लिए उचित कानून और नियम हो। संसद ने अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है। अगर संसद ऐसा नही करती है तो क्या अदालत को दख़ल नही देना चाहिये। न्यायमूर्ति ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा हालांकि अभी तक चुनाव आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पदों पर उन बेहतर लोगों की नियुक्ति हुई है, जिनकी निष्ठा सन्देह से परे रही है, लेकिन नियुक्ति प्रकिया को पारदर्शी बनाने के लिए उचित कानून/नियम का होना जरूरी है। न्यायालय ने कहा कि यदि संसद इसे लेकर कोई कानून नहीं बनाती है तो मामले का निपटारा न्यायिक स्तर पर किया जा सकता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी उस जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दी है, जिसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वह मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के पद के लिए नामों की सिफारिश करने के लिए एक तटस्थ और स्वतंत्र चयन समिति का गठन करे। याचिकाकर्ता ने विपक्ष के नेता (एलओपी) और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की मौजूदगी वाली समिति के गठन की मांग को लेकर शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई दो माह होने की संभावना है, क्योंकि शीर्ष अदालत ने सरकार को उचित प्रस्ताव के साथ आने के लिए दो महीने का वक्त दिया है।
अभी तक प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर राष्ट्रपति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और सदस्यों की नियुक्ति करते रहे हैं, यानी अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव आयोग जैसी स्वतंत्र संस्था में नियुक्ति की प्रक्रिया सरकार के हाथों में है।
विधि आयोग और प्रशासनिक सुधार आयोग भी चुनाव आयोग में नियुक्ति के लिए निष्पक्ष समिति की सिफारिश कर चुके हैं। याचिका में अदालत से दख़ल देने की मांग की गई है।