
नई दिल्ली, 03 अगस्त। भारत ने गुरुवार को कहा कि चीन के साथ सीमा गतिरोध का हल युद्ध से नहीं बल्कि द्विपक्षीय बातचीत से ही हो सकता है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में कहा कि धैर्य से ही सभी समस्याओं का हल निकलता है और अगर धैर्य नहीं रहा तो दूसरे पक्ष को उकसाया जा सकता है। सुषमा ने डोकलाम गतिरोध का जिक्र करते हुए कहा कि हम मुद्दे के लिए धैर्य बनाए रखेंगे। वह भारत की विदेश नीति और सामरिक भागीदारी के साथ तालमेल विषय पर राज्यसभा में हुई अल्पकालिक चर्चा का जवाब दे रही थीं। सुषमा ने कहा कि भारत विवाद के हल के लिए चीन से बातचीत करता रहेगा। चर्चा में कई सदस्यों ने इस गतिरोध को लेकर चिंता जताई थी और भारत की विदेश नीति को लेकर सवाल किए थे।सुषमा ने कहा कि सेना की तैयारी हमेशा होती है क्योंकि सेना युद्ध लडऩे के लिए होती है। लेकिन युद्ध से समस्याओं का हल नहीं हो सकता। इसलिए इसे कूटनीतिक रूप से हल किया जाना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जतायी कि मुद्दे का हल द्विपक्षीय बातचीत से हो सकता है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आज कहा कि भारत की विदेश नीति आज बुलंदी पर है और वह विश्व एजेन्डा तय कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जाते हैं तो वह आतंकवाद के मुद्दे को जोर शोर से रखते हैं और जब वह जी -20 देशों के सम्मेलन में जाते हैं तो वहां काले धन के मुद्दे को एजेन्डा बनाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत की बुलंदी आज इस स्तर पर पहुंच गयी है कि वह जब भी किसी देश में जाती हैं तो वहां के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से उनकी सीधी बात होती है।
श्रीमती स्वराज ने कहा कि आज दुनिया के सभी प्रमुख देश जैसे अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस तथा जर्मनी यूरोपीय संघ भी भारत के साथ हैं। पहले रूस ही हमारे साथ था लेकिन आज अमेरिका भी हमारे साथ है यह हमारी विदेश नीति की सफलता है। अरब जगत के सभी देशोंं के साथ भी हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं। इस संदर्भ में उन्होंने यमन में युद्ध के दौरान फंसे भारतीय नागरिकों को जटिल परिस्थितियों में स्वदेश लाने का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीयों को निकालने के लिए यमन और उसके साथ युद्धरत सऊदी अरब दोनों कुछ घंटे के लिए युद्ध विराम के लिए तैयार हो गये।
चीन के साथ डोकलाम क्षेत्र में गतिरोध पर उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है लेकिन इस मुद्दे पर चीन के साथ संवाद जारी है और सरकार राजनयिक स्तर पर बातचीत को जारी रखेगी। उन्होंने कहा कि भारत केवल डोकलाम ही नहीं बल्कि चीन के साथ सभी द्विपक्षीय मामलों पर विस्तार से बात कर रहा है। भूटान के साथ भी सरकार निरंतर संपर्क बनाये हुए है। भारत- भूटान और चीन के ट्राइजंक्शन क्षेत्र से संबंधित समझौतों में यह बात स्पष्ट रूप से कही गयी है कि सीमाओं का निर्धारण तीनों देशों की परस्पर बातचीत के आधार पर ही किया जायेगा।
श्रीमती स्वराज ने कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अस्ताना में मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ शब्दों में कहा था कि भले ही हमारे कितने भी मुद्दों पर मतभेद हों लेकिन हमें इनको विवाद में नहीं बदलने देना चाहिए।
चीन के रुख को देखते हुए युद्ध की तैयारी करने के समाजवादी पार्टी के प्रो. रामगोपाल यादव के सुझाव पर उन्होंने कहा कि सेनाएं तो युद्ध के लिए ही होती हैं लेकिन युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं होता। अंत में जीतने और हारने वाले दोनों पक्षों को बातचीत की मेज पर ही आना होता है। श्रीमती स्वराज ने कुछ सदस्यों के इस आरोप को भी गलत बताया कि सरकार ने चीन के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी। उन्होंने कहा कि सभी विपक्षी दलों की दो दिन बैठक बुलाकर सभी को इस बारे में पूरी जानकारी दी गयी और सरकार का रूख स्पष्ट किया गया। विपक्षी नेताओं को यह भी बताया गया कि सरकार इस बारे में हड़बड़ी में कदम नहीं उठायेगी और बड़े संयम तथा धीरज के साथ इस मुद्दे का समाधान निकाला जायेगा।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं ने चीन के मुद्दे पर सरकार का पक्ष जाने बिना चीनी राजदूत से मुलाकात कर इस पर उनका रुख जाना। कांग्रेस नेताओं को सरकार से बात कर चीन के सामने भारत का रूख रखना चाहिए था। कांग्रेस सदस्यों के इस आरोप पर कि सरकार प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के योगदान का उल्लेख नहीं करती उन्होंने कहा कि यह सही है कि नेहरूजी ने विदेशों में सम्मान अर्जित किया लेकिन यह व्यक्तिगत था जबकि श्री मोदी ने समूचे भारत को सम्मान दिलाया है।
चीन – पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से संबंधित बैठक में भाग नहीं लेने के कांग्रेस के राजीव शुक्ला के सवाल पर उन्होंने कहा कि शायद उन्हें यह मालूम नहीं है कि यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर से जा रहा है जो भारत का अभिन्न अंग है तो ऐसे में भारत का क्या इस बैठक में शामिल होना उचित होता। उन्होंने विपक्ष के इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि पड़ोसी देशों के साथ संबंध बिगड़े हैं। इसे तथ्यहीन बताते हुए उन्होंने कहा कि मालदीव में पानी के संकट, श्रीलंका में बाढ़ और नेपाल में भूकंप की आपदा में सबसे पहले भारत ने ही इन देशों में मदद का हाथ बढ़ाया। भूटान और बंगलादेश के साथ भी भारत के संबंध पहले से कहीं अधिक प्रगाढ़ हैं। श्रीलंका में चीन द्वारा बनाये गये बंदरगाहों पर विपक्षी दल कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि ये बंदरगाह उसके शासन में ही बने । यह चिंता का विषय है लेकिन इस चिंता की जन्मदाता कांग्रेस ही है।
पाकिस्तान के बारे में सरकार का कोई रोडमैप नहीं होने के कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी सदस्यों के आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ शांति और समझौते का रोड मैप है लेकिन आतंकवाद और बातचीत साथ साथ नहीं चल सकते। उन्होंने कहा कि सरकार ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ही इस नीति का खुलासा कर दिया था और सभी सार्क देशों को इसमें शामिल होने के लिए बुलाया गया था। उसके अगले दिन ही द्विपक्षीय बातचीत की रूपरेखा तय हो गयी थी। इसके बाद 9 दिसम्बर 2015 में व्यापक द्विपक्षीय वार्ता की सहमति बनी थी और इसी के तहत श्री मोदी लाहौर भी गये थे।
विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान के साथ बात पठानकोट हमले के बाद नहीं बल्कि आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद उस समय बिगड़ी जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उसे स्वतंत्रता सेनानी करार दे दिया। इससे बात बिगड गयी क्योंकि सरकार का साफ मानना है कि आतंकवाद और बातचीत साथ साथ नहीं चल सकते।
इजरायल के साथ पींग बढ़ाने और फलस्तीन को नजरअंदाज करने के आरोप पर उन्होंने कहा कि इजरायल हमारा मित्र जरूर है लेकिन फलस्तीन के मुद्दे से भारत कभी पीछे नहीं हटेगा। वह खुद और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी फलस्तीन की यात्रा पर गये थे और बाद में इजरायल गये।