आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और सिकुड़ता वैश्वीकरण प्रमुख चुनौतियां-मोदी

दावोस, 23 जनवरी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और ‘सिकुड़ते वैश्वीकरणÓ को दुनिया के सामने तीन प्रमुख चुनौतियां बताते हुये इसके समाधान के लिए प्राचीन भारतीय दर्शन के अनुरूप सभी देशों से मिलकर काम करने का आज आह्वान किया, इसके साथ ही उन्होंने विभिन्न वैश्विक संस्थाओं में मौजूदा समय के अनुरूप बदलाव को भी जरूरी बताया। श्री मोदी ने यहां विश्व आर्थिक मंच की 48वीं वार्षिक बैठक के पूर्ण सत्र में अपने उदघाटन भाषण में जलवायु परिवर्तन को बड़ी चुनौती बताते हुये कहा कि इसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कई द्वीप डूब चुके हैं या डूबने की कगार पर हैं, बहुत गर्मी, बहुत सर्दी, कहीं बाढ़़ तो कहीं सूखे की समस्या आ रही है। उन्होंने कहा कि इसके लिए सीमित दायरों से निकलकर सभी देशों को इससे मुकाबले के लिए एक हो जाना चाहिये था। उन्होंने कहा कि हमें अपने आप से पूछना चाहिये कि क्या ऐसा हुआ है। यदि नहीं तो क्यों? उन्होंने कहा हर कोई कहता है कि कार्बन उत्सर्जन कम हो, पर ऐसे कितने देश हैं जो विकासशील देशों को इसके लिए तकनीक उपलब्ध कराने के लिए आगे आते हैं।
श्री मोदी ने कहा कि भारतीय परंपरा में पृथ्वी को माता माना गया है। यदि हम पृथ्वी की संतान हैं तो प्रकृति और मानव के बीच संघर्ष क्यों चल रहा है। लालचवश हम अपने सुखों के लिए प्रकृति का शोषण तक कर रहे हैं। हमें अपने आप से पूछना होगा कि यह विकास हुआ है या ह्रास। प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को दूसरी बड़ी चुनौती बताते हुये ‘अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादीÓ के बीच बनाये गये कृत्रिम भेद का मुद्दा उठाया और परोक्ष रूप से पाकिस्तान को घरते हुये कहा आतंकवाद जितना खतरनाक है उससे भी खतरनाक है ‘गुड टेररिस्टÓ और ‘बैड टेररिस्टÓ के बीच बनाया गया कृत्रिम भेद। उन्होंने पढ़े-लिखे और संपन्न लोगों का अतिवाद की ओर आकर्षित होकर आतंकवाद में लिप्त होने को भी गंभीर चिंता का विषय बताया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खतरे से आज पूरी दुनिया वाकिफ है इसलिए वह इस पर ज्यादा नहीं बोलना चाहते। श्री मोदी ने दुनिया के देशों के आत्मकेंद्रित होने पर चिंता जताते हुये कहा कि वैश्विकरण की चमक धीरे-धीरे कम हो रही है। उन्होंने कहा बहुत से समाज और देश ज्यादा से ज्यादा आत्मकेंद्रित हो रहे हैं। वैश्विकरण अपने नाम के विपरीत सिकुड़ता जा रहा है। इसे आतंकवाद के खतरे से कम नहीं आँका जा सकता। उन्होंने कहा कि संरक्षणवाद और उनकी ताकतें सर उठा रही हैं। उनकी मंशा न सिर्फ वैश्विकरण से बचने की है, बल्कि उनका प्रयास इसका प्राकृतिक प्रवाह बदलने का भी है। क्रॉस बॉर्डर निवेश में कमी आयी है, वैश्विक आपूर्ति श्रंखला की वृद्धि रुकी हुई है। उन्होंने कहा कि इसका समाधान परिवर्तन को समझने और उसे स्वीकार करने में है।
प्रधानमंत्री ने कहा वैश्विकरण की चमक धीरे-धीरे कम हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आदर्श अभी भी सर्वमान्य हैं। विश्व व्यापार संगठन भी व्यापक है। लेकिन, दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने संगठनों की संरचना, व्यवस्था और उनकी कार्यपद्धति क्या आज के मानव की आकांक्षाओं, उनके सपनों को, आज की वास्तविकताओं को परिलक्षित करते हैं? इन संस्थानों की पुरानी व्यवस्था और आज के विश्व में बहुतायत विकासशील देशों की आवश्यकताओं के बीच एक बहुत बड़ी खाई दिखाई दे रही है।” उन्होंने कहा कि वैश्विक संस्थाओं में बदलाव जरूरी है।
उन्होंने कहा कि भारत ने कोई राजनीतिक या भौगोलिक महत्वाकांक्षा नहीं पाली है। हमने किसी भी देश के संसाधनों का शोषण नहीं करते। भारत ने यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र विविधता का सम्मान, सौहार्द्र और समन्वय, सहयोग और संवाद से सभी विवादों और दरारों को मिटाया जा सकता है। शांति स्थिरता और विकास के लिए यह भारत का जाँचा-परखा नुस्खा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *