
बिजनौर (चिंगारी) जिला कारागार बिजनौर का इतिहास सालों साल पुराना है। जेल में प्रवेश करते ही पुराने जमाने की बिल्डिंग गुरे वक्त की याद दिलाती है। जेलर और जेल अधीक्षक के कार्यालय को दीवारें भी कई जमाने देख चुकी है। कारागार का मुख्य द्वार किलानुमा है। जिसके भीतर प्रवेश करते ही एक अलग दुनिया के दर्शन होते हैं। एक ऐसी दुनिया जहाँ भिन्न-भिन्न संस्कृति के लोग एक साथ रहते है। जहां के नियम कानून सा हैं और गलती करने पर सजा के भी प्रावधान है। जेल प्रशासन कारागार में बंद लोगों को सुधारने में लगा रहता है, जो अपराध से बाहर करके आए हैं उसकी पुनरावृति न हो, इसका पाठ बदियों को हर रोज पढ़ाया जाता है। ब्रिटिश जमाने की जिला जेल में क्षमता से दोगुने बंदी है। जेल प्रशासन को बंदियों को रखने की व्यवस्था बनाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। जेल में बंदियों की यह समस्या जस की तस है। जेल में 640 बंदियों को रखने की क्षमता है, जबकि 1050 से ज्यादा बंदी जेल में बंद हैलों की संख्या समय-समय पर पटती-बढ़ती रहती बिजनौर की जेल ब्रिटिश जाने को है। देश की आजादी से पहले 1852 में ये जेल सकते हैं। वर्ष 1990 के बाद जो पैक बनी थी। जेल के पास 12-4 हेक्टेयर जमीन है। 930 मीटर लंबाई में जेल बन हुई है। बाकी जमीन में होती है। खेती के काम में निपुण बंदियों से इस जमीन में खेती का काम लिया जाता है। जेल में पहले से बंदियों की संख्या क्षमता से ज्यादा रहती है। कई बार दोगुने से ज्यादा भी बंदी हो जाते हैं। इन हालात में जेल प्रशासन को बंदियों को रखने की व्यवस्था बनाने में भारी पापड़ बेलने पड़ते हैं।
बंदियों के लिये खेलकूद की भी व्यवस्था
बंदियों को सुधारने के लिए प्रशासन, समय-समय पर जेल विभिन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करता है। बंदियों के लिए खेलकूद की है। साथ ही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा चंदियों के लिए जागरुकता के लिए कैम्प भी लगाए जाते हैं। जेल में कई बंदी ऐसे भी है जो सालों से बंद है। इन दों को जेल दुनिया है। पुरानेदियों से जेल की व्यवस्था में सहयोग लिया जाता है और यही व्यवस्था पूरी करने की जिम्मेदारी में उनकी जिंदगी गुजर रही है।
आज के ज़माने के जेलर हैं शैलेन्द्र प्रताप

बिजनौर चिंगारी)। जेल और जेलर के नाम से ही लोगों के माथे पर शिकन आ जाती है। जब कोई अपराधी जेल की हवा में प्रवेश करता है की कार आफै दिलों-दिमाग में रहता है, लेकिन जिला कारागार के जेलर सेन्द्र प्रताप सिंह की शैली उनके जेलर वाले से है। श्री सिंह सदियों के साथ घुले-मिले रहते हैं। उनसे सुधारने और जो पो बाहर करके आए है, उसका प्रपक्षित कराने के लिए कुछ करते रहते हैं। जेल एक सेनिरिव है जहां तर अपराधी भी बंद रहते हैं और जेल में बंद रहते हुए भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। बंदियों की अनुमित हरकतों पर लगाम लगाने के लिए शैलेन्द्र रहती भी करते हैं। जब सेवी बिजनौर के बने हैं से ही उन्होंने हमेशा बंदियों के लिए किया है। समय-समय पर आयोजित होते रहते हैं। बंदियों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए योग शिविर और स्पोर्टस कम्पीटिशन आयोजित कराते रहते अंदर है। सभी पर मंदियों के हैं। पर उनके परिजनों से केभी करते हैं। अपके शैलेन्द्र सिंह के जमाने के नहीं आज के जमाने के है।